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Showing posts from May, 2019

शम्'अ रोशन कर दी हमने

वज़न- 2122 2122 2122 212 ग़ज़ल शम्'अ रोशन कर दी हमने तीरगी के सामने । टिक ना पाएगा अंधेरा रोशनी के सामने ॥ बिन थके चलते रहे गर मंजिलों की चाह में । हार जाती मुश्किलें भी आदमी के सामने ॥ पर्वतों से हौसलों को देखकर हैरान है । आसमां भी झुक गया है अब जमीं के सामने ॥ आबे जमजम चूमता है एड़ियों को तिफ़्ल की । हार कर बहता है चश्मा तिश्नगी के सामने ॥ रोज़ हों रोज़े हों चाहे या के हो कोई नमाज़ । मां की खिदमत है बड़ी हर बंदगी के सामने ॥ मैंने माना तू बड़ा है प्यासा रखता है मगर । ए समंदर तू है छोटा मुझ नदी के सामने ॥ खूबियों से भी नवाजा 'आरज़ू' अल्लाह ने । फिर भला क्यों हार जाऊं इक कमी के सामने ॥       -अंजुमन 'आरज़ू'©✍ 23/05/2019

हल्दी

लघुकथा        एक बहन एक भाई वाले एक आदर्श परिवार में बड़े अरमानों से भाई का विवाह हुआ । गोरी सुंदर दुल्हन घर आई,  नये रिश्ते बने, माता-पिता को बहू, बहन को भाभी मिली । और भी नए रिश्तों की सौगातों के सपने सजे, आशाएं बंधीं ।       कुछ ही दिन बीते थे कि घर में अपने पति की अहम भूमिका को देखकर, वह अपनी ननद अल्पना से बोलीं- तुम्हारे भइया बड़ी अहमियत रखते हैं इस घर में..।" अल्पना ने कहा -हां भाभी, वे धुरी है इस घर की ।" भाभी रसोई में खड़ी थी तो अल्पना ने आगे कहा -"बस यूं समझ लीजिए, कि वह नमक है, जैसे नमक बिना रसोई सूनी, वैसे ही उनके बिना यह धर सूना ।"        भाभी बोलीं - "भैया नमक तो मैं क्या...??" अल्पना ने मुस्कुराकर कहां- "भैया रसोई के राजा तो भाभी रसोई की रानी ही होगी न .....।" तभी भाभी बोली- "मतलब काली मिर्च, और आप.... #हल्दी "      अल्पना खुश हो गई । भारतीय संस्कृति में हल्दी सौभाग्य सूचक जो मानी जाती है, भोजन हो या त्वचा रंगत बढ़ाती है, आदि आदि...।       अल्पना अपने मनभावन खयालों से निकल भी न पाई थी, कि भाभी आगे बोलीं -"भोजन मे

बिगड़ गई बात

बिगड़ गई बात बातों ही बातों में देखो बिगड़ गई बात । टूटे रिश्ते पल में छूटा जीवन भर का साथ ॥ कुछ तुमने हमसे कहा, कुछ हमने तुम से कहा । मानी ना अपनी खता, एक दूसरे से यूँ कहा । तुमने ये कैसे कहा, तुम्हारी क्या अवकात ॥ टूटे रिश्ते पल में छूटा जीवन भर का साथ ॥ झगड़े ये आगे बढ़े,जब हम तुम दोनों लड़े । झुकना कोई ना चाहे,अपनी ज़िद पे हम अड़े । जीता कोई नहीं, मिली दोनों को मात ॥ टूटे रिश्ते पल में छूटा जीवन भर का साथ ॥ माफियाँ माँगने पर भी जो बात ना बनी । साले और बहनोई में जाने कैसी ये ठनी । बहन बिना भाई की निकली सूनी बारात ॥ टूटे रिश्ते पल में छूटा जीवन भर का साथ ॥ पल भर में पिघल जाएँ,जो मिले अहम की आँच । सहेज के रखना इन्हें, रिश्ते हैं कच्चे काँच ॥ रेशम की डोरी हैं ये स्नेह की सौगात ।। टूटे रिश्ते पल में छूटा जीवन भर का साथ ॥ बातों ही बातों में देखो बिगड़ गई बात । टूटे रिश्ते पल में छूटा जीवन भर का साथ ॥     -अंनजुम 'आरज़ू'©🙏 23-04-2018

लिखी ईश को पाती

पुनर्जन्म लेने वाली तो, बात ना हम को भाती है। पर यदि इस में सच्चाई तो, मेरी कलम ये गाती है। सात जन्म के बंधन वाला तो, नहीं मेरा कोई साथी है। मुझको ये ही माँ-पा देना, लिखी ईश को पाती है ॥ मुझे अकेला कभी न छोड़े, मेरी प्यारी सी बहना । श्री हीन इस जीवन में, वो ही तो है सच्चा गहना । सात जन्म तक साथ रहेंगे, वो भी ये दोहराती है । मुझको ये ही माँ-पा देना, लिखी ईश को पाती है ॥ माँ का प्यारा बेटा राजा, चंदा मेरा भाई है । घर की सारी जिम्मेदारी, पापा सी निभाई है । सात जन्म की साथी उनकी ,भाभी भी तो भाती है। मुझको ये ही माँ-पा देना, लिखी ईश को पाती है ॥ भैया की बिटिया आना, है नटखट करती नादानी। और बहन का बेटा, आनू भी तो करता शैतानी। ये सब मुझको सात जन्म दे, दुआ ये लब पे आती है। मुझको ये ही माँ-पा देना, लिखी ईश को पाती है ॥ छोटा राखी भाई मेरा, उससे भी है चाहतें। बहन-जमाई सुखी रहे तो, मन को मिलती राहतें । हर मुश्किल में साथ खड़े हैं, सुख दुख के ये साथी हैं । मुझको ये ही माँ-पा देना लिखी ईश को पाती है ॥ घर से बाहर भी तो मुझको, मिश्री से मीठे बोल मिले । मित्र मंडली सीमित लेकिन, रिश्

हाइकु

     पत्नी ये बोली सुन ओ हमजोली     होके नरम ।      दोस्तों की टोली करती है ठिठोली      खुली है रम|      बीड़ी शराब होते सब खराब     फैंको चिलम|     होता है बुरा सिगरेट का कश     ना मारो दम|     करो ना शोर चलो घर की ओर     तुम्हें कसम|     मां के दुलारे हो बच्चों के भी प्यारे     मेरे बलम|     नम क्यों आंख हम तुम हैं साथ     काहे का गम|     छोड़ो भी पीना नए सिरे से जीना     सीख ले हम।        -अंजुमन 'आरज़ू'©✍ 31-05-2018

दो जून की रोटी

दो जून की रोटी मिलती, हम हैं किस्मत वाले । कितने लोग भूखे रहते हैं, मिलते नहीं निवाले ॥ हाथ ठेला लिए धूप में, आम-जाम चिल्लाए । तब जाकर घर वालों को वो, आधा पेट खिलाए । रोटी की खातिर बेचे, गुपचुप चने मसाले ॥1॥ कितने लोग भूखे रहते हैं, मिलते नहीं निवाले ॥ फूल बेचने वाले बच्चे, ढूंढे दृष्टि आस की । आधा तन कपड़ा पहने जो, खेती करें कपास की । जूते बेचने वालों के, पैरों में भी है छाले ॥2॥ कितने लोग भूखे रहते हैं, मिलते नहीं निवाले ॥ जिनके कांधे पे हल है, उनके भी आंसू झलके। हलधर की हल-आशा जिनसे, वो हैं कितने हल्के । अन्नदाता करे फाँके चाहे, कितनी फसल उगाले ॥3॥ कितने लोग भूखे रहते हैं, मिलते नहीं निवाले ॥ बहुत विवश कर देती है ये, दो जून की रोटी । और विवश का लाभ उठाते, नीयत जिनकी खोटी । तन भी कर देना पड़ता तब, औरों के हवाले ॥4॥ कितने लोग भूखे रहते हैं, मिलते नहीं निवाले ॥ भरे पेट का शौक है कविता, बात ये कड़वी सच्ची । जितनी पीड़ा हो गाथा मैं, समझी जाती अच्छी । भूख पे कविता लिखके पहने, हैं मंचों पर माले ॥5॥ कितने लोग भूखे रहते हैं, मिलते नहीं निवाले ॥ दो जून की रोटी मिलती, हम

नवजीवन

यूं ही गुमसुम सी बैठी थी । सोच रही थी क्या जीना है । बिटिया आंचल धाम के बोली । मम्मी मुझको मम पीना है ॥1॥ खुद को छोड़ कहीं खो जाऊं । चिर निद्रा में मैं सो जाऊं । पर क्या होगा फिर इसके बाद । सोच ज़ोर धड़का सीना है ॥2॥ अभी तो बस दो साल हुई है । सधी हुई नहीं चाल हुई है । सीख रही है अभी बोलना । नानी को कहती नीना है ॥3॥ देखी जो मुझको यूं गुमसुम । पास में आ के रोली कुमकुम । भोलेपन से मुझसे बोली । किझने तेला क्या छीना है ॥4॥ माँ मैं हूं न तिला खिलौना देख तु मेला लूप छलोना फिल तू यूँ क्यों कल लोती है । क्या तेला आंचल झीना है ॥5॥ उसे देख मैं जब मुस्काई । वो भी खुश होकर यूँ गाई । नाच उठी फिर थिरक थिरक कर । तक तक तक तक  धिन धीना है ॥6॥ जब उसको यूँ गाते देखा । नाच उठी किस्मत की रेखा । जीना* सीख लिया फिर मैंने । हिम्मत ही जीवन-जीना* है ॥7॥ नवजीवन का स्वाद चखा है । रंजो गम को दूर रखा है । उसके भोले बचपन से ही, जीवन अमृत रस पीना है ॥8॥     -अंजुमन 'आरज़ू'©✍ 10/06/2018 _______________________________ शब्दकोश:- (7) 1*जीना = जीवित रहना 2* जीना = सीढ़ी

जुनून

नामुमकिन को मुमकिन कर दे ऐसा जज़्बा जुनून है । कोशिश करने वालों के तो सारे रंग मरून हैं ।। अपनी अपनी ज़िद पे अड़े हैं सीमा के दोनों ही छोर । वो भी अपनी माँ के बेटे हम भी तो हे सिरमोर ।। पर मातृभूमि कब चाहती अपने बेटों का खून है ।। नामुमकिन को मुमकिन कर दे ऐसा जज़्बा जुनून है ।। संतुष्टि न हो तो अटारी चैन कहाँ पाती है । और कहीं तो छोटी सी कुटिया भी मुस्काती है । दुनिया है कितनी सुंदर गर अंतर्मन में सुकून है ।। नामुमकिन को मुमकिन कर दे ऐसा जज़्बा जुनून है ।।      -©अंजुमन 'आरज़ू' ✍ 29/03/2018

हिम्मत को सलाम

भीगे परों से उड़ के तूने छू लिया आसमान । हिम्मत को सलाम है तेरा हौसला है महान ।। कोई नहीं सूरज का साथी तन्हा तमतमाता है । पर्वत के शिखरों पे चढ़ पाताल का तम भगाता है ।। जग का अकेले पोषण कर कहलाता है भगवान । हिम्मत को सलाम है तेरा हौसला है महान ।। सो जाता जब थकके दिवाकर रोज निशा आती है । छा जाता जब घना अंधेरा जलते दिया बाती है । नन्हा सा दीपक भी देखो है कितना बलवान । हिम्मत को सलाम है तेरा हौसला है महान ।। सीमा पर प्रहरी बन कर दुश्मन को धूल चटाये। जान भले ही दे दें लेकिन झंडा झुक ना पाये ।। दस दस पे भारी है मेरे हिन्द का एक जवान । हिम्मत को सलाम है तेरा हौसला है महान ।। सबसे ऊँचे लोग हैं वो जो हिम्मत के बन्दे हैं । ना तो लूले और न लंगड़े ना ही ये अन्धे हैं ।। अक्षम कहकर इनका कभी ना करना तुम अपमान । हिम्मत को सलाम है तेरा हौसला है महान ।। भीगे परों से उड़के तूने छू लिया आसमान । हिम्मत को सलाम है तेरा हौसला है महान ।।      -©अंजुमन 'आरज़ू'✍ 28/03/2019

पापा से बेहद प्यार है

माना कि यह जीवन, संकुचन नहीं विस्तार है । किन्तु मुझको अपने पापा से बेहद प्यार है ॥ गोदावरी ने विस्तार रोका, ऋषि अगस्त के कमंडल में । मेरा भी विस्तार रुक रहा, परिस्थितियों के बबंडर में । गोदावरी ने पति के लिए, तो मैंने अपने पिता के लिए । दोनों ने ही प्रेमवश रोका अपना प्रसार है । किन्तु मुझको अपने पापा से बेहद प्यार है ॥ आज कमंडल मे सिमटी ,कल कौआ कोइ न आएगा । मेरा संकुचित जीवन, नदी सा प्रवाह नहीं पाएगा । सरस्वती सूख भी गई तो क्या, संगम तो हो जाएगा । अपनों की खातिर मिट जाना,जीवन का यही तो सार है । किन्तु मुझको अपने पापा से बेहद प्यार है ॥ मात पिता ने इतना त्यागा ,क्या मैं पद नहीं तज सकती । मुक्त गगन में उड़ना छोड़, पिंजरे में नही सज सकती । अपनी उड़ान से भली मुझे, लगती पिता की मुस्कान है । बचपन से अब तक इनके ,कितने मुझ पर उपकार हैं । किन्तु मुझको अपने पापा से बेहद प्यार है ॥     -अंजुमन 'आरज़ू'©✍ 2006 __________________________        मेरी इस रचना में अंतर कथाएं निहित हैं पहली मेरे संघर्ष की- मेरी नियुक्ति वरिष्ठ अध्यापक के पद पर घर से काफी दूर हुई थी। इस वजह

सोना धरती कर दी पीतल

बड़, आम, आँवला और पीपल, रत्नों पर भारी तुलसी - दल । हर पेड़ का हमसे नाता है , हर पेड़ सुखों का दाता है ।। कचनार, अनार, कदली सेमल , छाया इनकी अमृत शीतल ।। जहाँ प्रकृति पूजी जाती है, कपास से बनती बाती है। हर पेड़ प्रभु का निवास है, जिसपर हमको विश्वास है । दूर्बा गणपति जी को भाती, कृष्णा ने लिखी पीपल पाती । लक्ष्मी जी को भाता गुडहल ।। रत्नों पर भारी तुलसी - दल।। जहाँ नीम की ठंडी छाया है, वहाँ निरोगी रहती काया है । ऋषियों ने आयुर्वेद लिखा, हर पेड़ का औषधीय भेद लिखा । भृंगराज,शंखपुष्पी, ब्राह्ममी , विश्व मे सिरमोर हमीं हैं हमीं । सम्मान मे आगे है श्रीफल ।। रत्नों पर भारी तुलसी -दल।। नदियों खुद ही अब प्यासी हैं, पेड़ों की आँखें उदासी हैं । अतिवृष्टि अल्पवृष्टि छेलें , खुद अपने भविष्य से हम खेलें । धर्मों की भूले सब सीखें, अब व्यथित हुए रोऐं चीखें । सोना धरती कर दी पीतल ।। रत्नों पर भारी तुलसी -दल ।। बड़ आम आँवला और पीपल, रत्नों पर भारी तुलसी -दल । छाया इनकी अमृत शीतल ।।     -अंजुमन 'आरज़ू'©✍

फूलों संग शूलें

कौन है दुनिया में ऐसा जो बस झूलों में झूले । सहना पड़ता है सबको ही फूलों के संग शूले ।। फूल का रूप खिलाने को ज्यों धूप ज़रूरी है । जीवन में भी बिन संघर्ष हर बात अधूरी है । मुस्कान फूल की याद है पर संघर्षों को क्यों भूले ।। सहना पड़ता है सबको ही फूलों के संग शूले ।। है आसान ऋतु वसंत में फूलों का खिल जाना । पर मैंने तो भीषण गर्मी के गुलमोहर को माना । शिरीष को है सलाम जो हर मौसम को कबूले । सहना पड़ता है सबको ही फूलों के संग शूले ।। देख कमल को गौर से कीचड़ में मुस्काता है । विपरीत परिस्थितियों में खिलके ईश को भाता है । कर उन्नत व्यक्तित्व फूल सा चल गगन को छूले । सहना पड़ता है सबको ही फूलों के संग शूले ।। कौन है दुनिया में ऐसा जो बस झूलों में झूले । सहना पड़ता है सबको ही फूलों के संग शूले ।।      -अंजुमन 'आरज़ू'©✍

जीवन का गीत

जीवन का गीत सुनातीं हैं समन्दर की लहरें । धीरज से गुनगुनाओ ये ग़ज़ल की दो बहरें ।। अपने खारे पन की पीड़ा कह नहीं पाता । दूर तक फैला है लेकिन बह नहीं पाता । इतना बड़ा होकर भी कहाँ समन्दर पूरा है । ऐसे ही दुनिया में हर इंसान अधूरा है । पर हिम्मत के सामने कब अधूरेपन ठहरें ।। प्रेम भी एक समन्दर हे संभाले न संभले । फूल कहाँ फिर गालों में  खिल आते हैं गमले । पर जैसे समन्दर का सारा पानी खारा है। वैसे ही इस प्रेम से हर कोई हारा है । उठ जातीं हैं दीवारें लग जाते हैं पहरे ।। जीवन का गीत सुनातीं हैं समन्दर की लहरें । धीरज से गुनगुनाओ ये ग़ज़ल की दो बहरें ।।     -अंजुमन 'आरज़ू'©✍

तुमसे ना कोई नाता है

तुमसे न कोई नाता है, पर साथ तुम्हारा भाता है । तुमसे बिछड़न की बात सोच, मन कुछ उदास हो जाता है । जब आये थे तुम कोई न थे, पर धीरे धीरे मीत बने। फिर अर्थपूर्ण कुछ शब्द घने, संबंधों के नव गीत बने ।। मुस्कानें तो सब से बाँटी, दुख दर्द तुम्हीं से बाँटा है ।। तुमसे बिछड़न की बात सोच, मन कुछ उदास हो जाता है ।। नित खुशियों की उजयाली हो, अब बात न कोई काली हो । हर एक दिवस ईदों वाला, और रात दिवाली वाली हो । अब जाते हो तो जाओ सखे! राहों में न कोई काँटा है । तुमसे बिछड़न की बात सोच मन कुछ उदास हो जाता है । तुमसे ना कोई नाता है, पर साथ तुम्हारा भाता है । तुमसे बिछड़न की बात सोच, मन कुछ उदास हो जाता है ।।              -अंजुमन 'आरज़ू'.

नारी की परिभाषा

क्या बांधेगी नारी तुझको  कोई एक परिभाषा । सहन शक्ति तू,सृजन शक्ति तू,तू आशा की भाषा ॥ स्नेहमयी ममता की मूरत, प्रेम की छाया ठंडी । पतन पाप पाखंड जले जब,बन जाती रंणचण्डी। अबला नहीं है नारी, तू तो हर निर्बल की आशा ॥1॥ क्या बांधेगी नारी तुझको  कोई एक परिभाषा । सहन शक्ति तू,सृजन शक्ति तू,तू आशा की भाषा ॥ सतयुग में तारा त्रेता में सीता पर भी बीता । द्वापर में द्रौपदी तो कलयुग भी है कहाँ ये रीता । आसिफा,दामिनी,निर्भया,कितनी रोज़ी, नताशा ॥2॥ क्या बांधेगी नारी तुझको  कोई एक परिभाषा । सहन शक्ति तू,सृजन शक्ति तू,तू आशा की भाषा ॥ अन्नपूर्णा, गृहलक्ष्मी बन सारे फ़र्ज़ निभाती है । पूजनीय है पर घर में भी सम्मान कहाँ पाती है । मंदिर की देवी बनना नहीं नारी की अभिलाषा ॥3॥ क्या बांधेगी नारी तुझको  कोई एक परिभाषा । सहन शक्ति तू,सृजन शक्ति तू,तू आशा की भाषा ॥     -©अंजुमन 'आरज़ू'✍

अब सांझ ढली

अब साँझ ढली घर चल साथी, पूजन वंदन दीया बाती । कल भी तो बिटिया बोली थी, माँ याद तुम्हारी है आती ॥ प्रतिस्पर्धा कैसी छाई है, दोनों को करनी कमाई है । तब होते हैं सपने साकार, तब घर लेता सार्थक आकार । माँ का चश्मा पा की बनियान, और बच्चों का शिक्षा अभियान । सब्ज़ियाँ दाल फल नाशपाती ॥ अब साँझ ढली घर चल साथी ॥ जब 'आना' सीखी थी वाचन, तब मुझे काम था निर्वाचन । 'आनू' ने जब सीखा बढ़ना, सिर पर खड़ी थी जनगणना । बच्चों की तुतलाती भाषा, गिर-गिर संभलने की आशा । कितना कुछ छूट गया हमसे, ये सोच के आँखें भर आती ॥ अब साँझ ढली घर चल साथी ॥     -अंजुमन 'आरज़ू'©✍ मई 2018

गरीबी-गौरव गान

गरीबी  तो गौरव गान है । इसका बहुत सम्मान है । शबरी सा धीरज धर  के, कुछ तप भी करना पड़ता है । आस प्रभु की मन भरके, जग से लड़ना पड़ता है । तब बेर खाते श्री राम है ।। इसका बहुत सम्मान है ।। छोड़ के छप्पन भोग कृष्ण को, विदुर की कुटिया भायी। वैभव से कहीं ज्यादा प्रभु को, प्रीति गरीबी की ललचायी । लीला करते घनश्याम हैं ।। इसका बहुत सम्मान है ।। गरीबी तो गौरव गान है । इसका बहुत सम्मान है ।।       -©अंजुमन 'आरज़ू'✍ 27/03/2019

धरती की संतान

हम वसुधा के रहने वाले  धरती की सन्तान हैं । पर शायद हम ने खो दी अपनी सुखद पहचान है ॥ नदियों की लहरों में जागा गीत नया संगीत नया । पर्वत सागर करते हैं संघर्ष के लाखों गीत बयां ॥ हरियाले खेतों से पाये हमने परम वरदान है ॥ पर शायद हमने खो दी अपनी सुखद पहचान है ॥ धरती पुत्र कहला कर कभी हम फूले नहीं समाते थे । पोषित हो कर धरती माँ से गीत खुशी के गाते थे । अब स्वार्थ पूर्ण लालच से लेकिन दोनों ही परेशान है ॥ पर शायद हमने खो दी अपनी सुखद पहचान है ॥ कुटुम्भकम् वसुधैव सिखाते भाई भाई के हैं नाते । राजनीति का रंग चढ़ा यूँ भूल गये सब सच्ची बातें । मानवता को भूल गये अब हिंदू या मुसलमान हैं ॥ पर शायद हमने खो दी अपनी सुखद पहचान है ॥ हम वसुधा के रहने वाले धरती की सन्तान है । पर शायद हम ने खो दी अपनी सुखद पहचान है ॥     -अंजुमन 'आरज़ू'©✍ 21-04-2018

पतझड़-बहार

पतझड़ को भी बहारों सा सजाते हैं । चलो आज मुश्किलों को हराते हैं ।। भागिरथी प्रयास कर गंगा धरा पल लाएँ । सूखाग्रस्त वंजर धरती को फिर हरियाएँ ।। चलो हौसलों का पर्याय बन जाते हैं ।। पतझड़ को भी बहारों सा सजाते है ।। सूखी सरि में कैसे चले जर्जर कश्ती । मरु गुलशन में कैसे छाए फिर मस्ती ।। चलो कुछ ऐसे उपाय अपनाते हैं ।। पतझड़ को भी बहारों सा सजाते हैं । औचित्य वसुंधरा दिवस का क्या होगा । जब तक न हर एक मनुज सजग होगा ।। चलो स्यम् जागृत हो सबको जगाते हैं । पतझड़ को भी बहारों सा सजाते हैं ।। तप्त धरा पर जब छाए घटा मनहार । मन गाए खुश होकर तब राग मलहार ।। चलो मौसम भर मुस्कुराते हैं । पतझड़ को भी बहारों सा सजाते हैं । पतझड़ को भी बहारों सा सजाते हैं । चलो आज मुश्किलों को हराते हैं ।।     -अंजुमन 'आरज़ू'©✍

जीवन-नौका

ताटंक छंद विधान:- सम मात्रिक छंद, 16-14 की यति से 30 मात्राएं, पदांत में यगण अनिवार्य, कुल 4 चरण, क्रमागत युगल चरण सम तुकांत । _______________________________                     जीवन-नौका प्रकृति चैत्र मास में जैसे, सकल नवल हो जाती है । जीवन को जीवन देकर माँ, नवजीवन खुद पाती है । तेज भले वैशाख धूप हो, पथ संघर्ष चलाती माँ । अमलतास पलाश शिरीष सा, खिलना हमें सिखाती माँ । जीवन जेठ दुपहरी सा तो, माँ है पीपल छाया सी । जल सी पावन शीतल निर्मल, मूल्यवान सरमाया सी । आषाढ़ मास बरखा से जब, मन-माटी गीली हो ली । संस्कार-बीज बो देती माँ, बोल बोल मीठी बोली । माँ सावन सा नेह सींचती, सजा अधर पर मुस्कानें । खुश होकर कजरी गाती वह, हरियाती जब संतानें । कभी निराशा में जब छाते, भय के बादल भादो में । संबल भरती सूर्य किरण सी, माँ आशा संवादों में । माँ कहती दुख-घन जब छटते, शरद चंद्रमा है आता । हों ज़रूरत ओस सी छोटी, अश्विन संदेशा लाता । मन कार्तिक की रातों को माँ, दीवाली कर देती है । घोर तमस्वी भरी अमा को, जगमग जग कर लेती है । अवसादों की सर्दी में माँ,  धूप बने हल्की मीठी । अगहन सूरज बन हर

पहचान

आज-कल मैं कुछ मुस्कुरा के चलती हूँ । झुका के नहीं सिर उठा के चलती हूँ । अहं से नहीं... अहम से । मैं मुस्कुरा के चलती हूँ क्योंकि अब मेरी अपनी अहम पहचान है.... अब भी मैं अपने पिता की बेटी तो हूँ, पर मुस्कुराती हूँ क्योंकि अब वो भी मेरे पिता हैं जाने जाते हैं मेरे नाम से... मैं आज भी अपने प्यारे भाई की बहन तो हूँ पर अब मैंने अपनी पहचान कुछ ऊँची कर ली है एक उड़ान भर ली है और अब, मेरे अपने नाम से आते हैं पत्र, घर में विवाह पत्रिकाएं ग्रह प्रवेश के आमंत्रण भी अब प्यारा भैया मेरा भाई भी है..... मैं मुस्कुरा के चलती हूँ क्योंकि अब 'वो' मेरे पति हैं. .. कामकाजी होने की थकान मिलके बांटते हैं बिना हीन भावना के सब्जियां भी काटते हैं माना कि सुखद एहसास है उनकी पत्नी कहाना पर ये भी तो है कितना सुहाना कि अब वो मेरे पति हैं..... मेरी पहचान की गति हैं..... मैं मुस्कुरा के चलती हूँ हालाँकि, मेरी अवस्था चढ़ रही है प्रोढ़ता के सोपान। वृद्ध हो रही हूं मैं पर मेरी पहचान तरुण होती जा रही है मेरे युवा बेटे को भा रही है और वो आज भी मेरा ह