ग़ज़ल धूप के बिन सफर में है साया नहीं शम'अ भी रात के बिन नुमाया नहीं । जग में है कौन जिस ने हमारी तरह दर्दो ग़म ज़िंदगी में उठाया नहीं । वेणु वीणा पखावज हो या आदमी चोट खाए बिना सुर में गाया नहीं । रात प्यारी हमें जुगनुओं की तरह रोशनी का सफर रास आया नहीं । रंग जमके जमाएंगे हम इसलिए तुमने महफिल में अपनी बुलाया नहीं मुद्दतों बाद जब मिल गया राह में वो मुझे देख कर मुस्कुराया नहीं । हर ग़ज़ल 'आरज़ू' की है जिसके लिए बस उसी ने इन्हें गुनगुनाया नहीं । -अंजुमन 'आरज़ू'©✍ 30/04/2019