वज़्न -122 122 122 122 #ग़ज़ल फिसलती मिलेगी संभलती मिलेगी, यहां ज़िंदगी रँग बदलती मिलेगी । कभी कुछ न हो पास फिर भी खुशी से, सुकूं के फ़लक पे टहलती मिलेगी । अजब ज़िंदगी का फ़साना है यारों, कि सब पा कभी हाथ मलती मिलेगी । कहीं शक्ल औलाद की ये बदल के, कि जागीर सारी निगलती मिलेगी । लिपटती कभी बन के दामन कभी ये, बचाकर के दामन निकलती मिलेगी । कहीं धूप में पुरसुकूं मुस्कुराती, कहीं छांव में भी ये जलती मिलेगी । कभी अपने तेवर दिखाकर डराती, कभी ख़ुद सहमती दहलती मिलेगी । बड़ी फ़ुर्सतों से ठहरती है ग़म में, ख़ुशी में बहुत तेज़ चलती मिलेगी । कभी 'आरज़ू' पूरी करती है सारी, कभी ख़्वाब सारे कुचलती मिलेगी । -अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' ©✍ 27/09/2019 छिंदवाड़ा म•प्र•