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Showing posts from September, 2019

ग़ज़ल ज़िंदगी

वज़्न  -122  122  122  122              #ग़ज़ल फिसलती मिलेगी संभलती मिलेगी, यहां ज़िंदगी रँग बदलती मिलेगी । कभी कुछ न हो पास फिर भी खुशी से, सुकूं के फ़लक पे टहलती मिलेगी । अजब ज़िंदगी का फ़साना है यारों, कि सब पा कभी हाथ मलती मिलेगी । कहीं शक्ल औलाद की ये बदल के, कि जागीर सारी निगलती मिलेगी । लिपटती कभी बन के दामन कभी ये, बचाकर के दामन निकलती मिलेगी । कहीं धूप में पुरसुकूं मुस्कुराती, कहीं छांव में भी ये जलती मिलेगी । कभी अपने तेवर दिखाकर डराती, कभी ख़ुद सहमती दहलती मिलेगी । बड़ी फ़ुर्सतों से ठहरती है ग़म में, ख़ुशी में बहुत तेज़ चलती मिलेगी । कभी 'आरज़ू' पूरी करती है सारी, कभी ख़्वाब सारे कुचलती मिलेगी ।    -अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' ©✍ 27/09/2019 छिंदवाड़ा म•प्र•

ग़ज़ल - दुनिया

वज़्न -122  122  122  122              ग़ज़ल अनोखी ये दुनिया बदलती मिलेगी, भरम में ये ख़ुद को ही छलती मिलेगी । जिन्होंने सिखाया है चलना संभल कर, उन्हीं से बदल चाल चलती मिलेगी । अगर वक्त पर सच न सच को कहा तो ॥ ज़मी आसमा को निगलती मिलेगी ॥ कली जो लुटाती है खुशबू फ़िज़ा में । उन्हें ही फ़िज़ा ये मसलती मिलेगी ॥ ये कमज़र्फ़ इंसां सी छोटी नदी है । ज़रा आब पाया उछलती मिलेगी ॥ दिखाओ न यूं आइना दूसरों को । गिरेबां में अपने ही ग़लती मिलेगी ॥ जो चट्टान टूटी नहीं पत्थरों से । वो पानी से इक दिन पिघलती मिलेगी ॥ अगर बंद इक दर हुआ तो वहीं से, नयी राह कितनी निकलती मिलेगी । हुई एक हसरत मुकम्मल तो दिल में, नयी 'आरज़ू' फिर मचलती मिलेगी ।     -अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' ©✍ 26/09/2019 छिंदवाड़ा म• प्र•

मुबारक़ तुम्हे जन्मदिन हो तुम्हारा

वज़न-122 122 122 122 तुम्हें आज रब ने ज़मीं पे उतारा । मुबारक़ तुम्हें जन्मदिन हो तुम्हारा ॥ दुआ है कि राहों में कांटा न आए । ये जीवन सदा फूल सा मुस्कुराए । अगर फिर भी आये रुकावट के पत्थर । उन्हीं से बना पुल करो राह बहतर । बनो हर चुनौती का उत्तर करारा ॥ मुबारक़ तुम्हें जन्मदिन हो तुम्हारा ॥ रहो छांव में पर चखो धूप को भी । निखारो तो संघर्ष से रूप को भी ॥ करो काम ऐसे कि हो नाम रोशन । महकने लगे तुमसे सारा ही गुलशन ॥ बनो फूल दीपक कली या सितारा । मुबारक तुम्हें जन्मदिन हो तुम्हारा ॥ अंधेरा निराशा का छाए न काला । रहे हौसलों का सदा ही उजाला ॥ ख़ुदा तुम को हर हाल में दे सहारे । न पतवार छूटे करों से तुम्हारे ॥ भंवर में फंसे ना तुम्हारा शिकारा । मुबारक़ तुम्हें जन्मदिन हो तुम्हारा ॥ तुम्हारे लिए हमने मांगी है मन्नत । मिले इस ज़मीं पे ही खुशियों की जन्नत ॥ न हो कामयाबी से कोई भी दूरी । सभी 'आरज़ू' दिल की हो जाएँ पूरी ॥ रहे ख़ुशनुमा ज़िंदगी भर नज़ारा । मुबारक़ तुम्हें जन्मदिन हो तुम्हारा॥ तुम्हें आज रब ने ज़मीं पे उतारा । मुबारक़ तुम्हें जन्मदिन हो तुम्हारा ॥

शामियां की तरह

वज़न -212  212  212             ग़ज़ल सर पे है शामियां की तरह । ये दुआ आसमां की तरह ॥ इस ज़माने में मां के सिवा । कोई होगा न मां की तरह ॥ मुझको उसने लगाया गले । चूम कर बागबां की तरह ॥ उनको सदमा कि ग़म में भी हम । जी रहे शादमां की तरह ॥ वो जो मुश्किल में कतराते थे । साथ है कारवां की तरह ॥ हम ग़ज़ल में हक़ीक़त छुपा । कह रहे दास्तां की तरह ॥ 'आरज़ू' रब की रहमत बिना । जीस्त है इंतिहां की तरह ॥    -अंजुमन आरज़ू  ©✍ 18/09/2019

चाणक्य छला जाता है

आधार छंद - सार/ललित छंद गीत - चाणक्य छला जाता है जलता है खुद दीपक सा पर, ज्ञान प्रकाश दिखाता । बांट के अपना सब सुख जन में, आनंदित हो जाता । इसके बदले शिक्षक जग से, देखो क्या पाता है । हर युग में चाणक्य सा कोई, हाय छला जाता है ॥ इंद्रासन ना ले ले तप से, मधवा भय से बोला । अहिल्या गौतम के अमृत से, जीवन में विष  घोला । विश्वामित्र की भंग तपस्या, छल से करवाई थी । सत्ता रक्षा को पृथ्वी पर, इंद्र परी आई थी । काम क्रोध मद लोभों का फिर, दोष मढ़ा जाता है । हर युग में चाणक्य सा कोई, हाय छला जाता है ॥ नेतृत्व से परिपूर्ण बनाके, गढ़ता कितने नेता । मंत्री हो या भूप सभी को, रुप यही है देता । पर सत्ता धारी बनते ही, लोग मदांध हुए हैं । काट दिए सिर उनके जिनके, झुक कर पांव छुए हैं । शस्त्र निपुण कर देने वाला, वाण यहां खाता है । हर युग में चाणक्य सा कोई, हाय छला जाता है ॥ नंद वंश ने एका की जब, बात एक ना मानी । चंद्रगुप्त सा शासक गढ़ के, याद दिलाई नानी । राजा की रक्षा का उपक्रम, दुर्घटना बन आया । बिंदुसार ने माँ की हत्या, का आरोप लगाया । अपने ही निर्मित शासन को, छोड़ चला जाता है । हर

ग़ज़ल - फ़लसफ़ा

2122 2122 2122 212                  ग़ज़ल इन किताबों में निहां है ज़िंदगी का फ़लसफ़ा । ये खमोशी से बयां करतीं सदी का फ़लसफ़ा ॥ बनके ज़ीना हर बशर को जीना सिखलाती किताब । इनमें बातिन है बुलंदी की खुशी का फ़लसफ़ा ॥ स्याह है पर रोशनाई नाम यूं ही तो नहीं । ये कुतुब पर दिल से लिखती रोशनी का फ़लसफ़ा ॥ क्या किताबों से बड़ा कोई यहां उस्ताद है । थाम कर उंगली सिखातीं रहबरी का फ़लसफ़ा ॥ हमसफर बन कर सफ़र आसान करतीं रात का । हर सफ़े पर है चमकता चांदनी का फ़लसफ़ा ॥ इन किताबों में हैं गहरे इल्म के दरिया कई । काश मुझ में हो हमेशा तिश्नगी का फ़लसफ़ा ॥ सूफ़ियाना दिल में मेरे अब यही है 'आरज़ू' । ज़िंदगी भर मैं निभाऊं सादगी का फ़लसफ़ा ॥      -अंजुमन आरज़ू  ©✍ 04/09/2019