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Showing posts from March, 2019

महादेवी जी की जयंती पर

वज़्न -1222 1222 1222 1222                ग़ज़ल कहानी वेदना की अब यहाँ किसको सुनाना है । हमारा ही खजाना है हमे ही अब निभाना है ॥ महादेवी की तनुजा मैं दुखों की हूँ वही बदली । गगन में भी नयन में भी नहीं मेरा ठिकाना है ॥ खुशी तो बस छलावा है इधर आई उधर चल दी । ज़हन में आज तक गूंजे ग़मों का वो फ़साना है ॥ छुपा कर वेदना मन में सुनो मैं पीर गाती हूं । ज़माना दाद दे कर कह रहा दिलकश तराना है ॥ यहां पर मांगने से कब कोई दिलदार मिलता है । जिसे आता है दिल देना उसी का ये जमाना है ॥ नमक है हाथ में सबके नहीं मरहम कोई देखो । फिर अपने दिल के छालों को यहां किसको दिखाना है ॥ किताबों की सहेली है नहीं ये 'आरज़ू' तनहा । महादेवी की यामा का बना देखो सिरहाना है ॥ रचना तिथि 26/03/2019 रचना स्वरचित एवं मौलिक है । ©®🙏     -सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍ छिंदवाड़ा मप्र

'इंद्रधनुष' (दोहा गीत)

इंद्रधनुष छाये गगन,खिले धरा का रूप । कुछ ऐसा ही है सखी, जीवन का प्रारुप ॥ इंद्रधनुष सा नेह तो, सतरंगी संसार । रंग मिलें मिलकर सजें, पायें रूप अनूप ॥ कुछ ऐसा ही है सखी, जीवन का प्रारूप ॥ एक से दूजा यूँ जुड़ा, इंद्रधनुष पहचान । आकर्षण हे साथ में, बिछड़े रूप कुरूप ॥ कुछ ऐसा ही है सखी, जीवन का प्रारूप ॥ इंद्रधनुष में सात हैं, जीवन रंग हजार । जो सब धीरज से सहे, वही रंग का भूप ॥ कुछ ऐसा ही है सखी, जीवन का प्रारूप ॥ सुख दुख दोनों ही मिलें, जीवन पथ में साथ । इंद्रधनुष बनता तभी, संग घटा के धूप ॥ कुछ ऐसा ही है सखी, जीवन का प्रारूप ॥ आशा और उमंग से, इंद्रधनुष के रंग । आशा बिन जीवन लगे, अंधकार का कूप ॥ कुछ ऐसा ही है सखी, जीवन का प्रारूप ॥ इंद्रधनुष छाये गगन, खिले धरा का रूप । कुछ ऐसा ही है सखी, जीवन का प्रारूप ॥ रचना तिथि 23/03/2019 रचना स्वरचित एवं मौलिक है । ©®🙏     -सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍ छिंदवाड़ा मप्र साहित्य सागर

जल संरक्षण

संरक्षित कर लो जल बरना जग जाएगा जल । आज सजग हो जाओ नहीं तो पछताओगे कल ॥ झीलों की आंखों में आंसू घोर उदासी है । अल्लह्ड़ता छोड़ी नदियों ने और रुआंसी है । सूखे होंठ कुओं के भी तो और प्यासे हैं तल ॥ आज सजग हो जाओ नहीं तो पछताओगे कल ॥ आज अगर हम पानी यूँ बर्बाद करेंगे । कल की पीढ़ी पर न हम इंसाफ करेंगे ॥ इतिहास न हमको माफ करेगा गर घोला ये गरल ॥ आज सजग हो जाओ नहीं तो पछताओगे कल ॥ संरक्षित कर लो जल बरना जग जाएगा जल । आज सजग हो जाओ नहीं तो पछताओगे कल ॥ रचना स्वरचित एवं मौलिक है । ©®🙏     -सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍ छिंदवाड़ा मप्र

'कविता' पर कविता

ये जीवन एक कविता सा या कविता है ये जीवन सी । कभी तो मुक्त बहती है कभी छंदों के बंधन सी । मुझे जीवन की कविता का सदा हर रूप भाता है । कभी ग़म की चुभन गाती कभी खुशियों के गायन सी ॥ उड़ाने कल्पना की भर के वापस लौट आती है । कभी ये मेघदूतम सी कभी वेदों के वाचन सी ॥ युगों के बाद भी कविता दिलों में राज करती है । कभी ग़ालिब की ग़ज़लों सी कभी मीरा के मोहन सी ॥ रगों में ख़ून बन कर बह रही है अब यही सरिता । बसी है 'आरज़ू' के मन में कविता देख धड़कन सी ॥ रचना तिथि 21/03/2019 रचना स्वरचित एवं मौलिक है । ©®🙏     -सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' ✍ छिंदवाड़ा मप्र

यमक के दोहे

हरी भरी हो ज़िंदगी, मांगू हरि से आज । इंद्रधनुष के रंग हों, बजे खुशी के साज ॥1॥ बाल सखा संग फाग में, लाल हुआ है लाल । देख जसोदा चूमती, है कान्हा का भाल ॥2॥ देखो बैठे साजना, छुपकर पीपर डार । हर्षित हो गोरी हँसे, सब रँग पी पर डार ॥3॥ रचना तिथि 20/032019 रचना स्वरचित एवं मौलिक है । ©®🙏      -सुश्री अंजुमन मंसूरी आरज़ू✍ छिंदवाड़ा मप्र

"प्यार जगायें होली में"

चलो दिलों में प्यार जगायें होली में । नफरत की दीवार गिरायें होली में ॥ बरसो से भीगी लकड़ी सा सुलगे मन । स्वार्थ ईर्ष्या द्वेष भरा सारा जीवन ॥ रीत नयी इस बार चलाई जाएगी । ऐसी हर अग्नि बुझायी जाएगी । पाप पतन पाखंड जलायें होली में । खुशियों का अंबार लगायें होली में ॥ खून के रिश्ते तकरारों से टूटे हैं । घर गुलशन के बिखरे बूटे बूटे हैं ॥ चलो नेह का रंग भरें मन पिचकारी । एहसासों से फ़िर महकाएँ फुलवारी । अपनों से हम खुद मिल आयें होली में । बचपन के नगमे दोहरायें होली में ॥ टेसू गुड़हल के संग पत्ते हरियाते । देख धरा के दृश्य हमें हैं समझाते । ये गुलाबी लाल हरे ओ केसरिये । ये सब तो हैं इस रंगोत्सव के ज़रिये । केसरिया संघ हरा मिलायें होली में । ध्वज अपना मिलजुल फहरायें होली में ॥ चलो दिलों में प्यार जगायें होली में । नफरत की दीवार गिरायें होली में ॥ रचना स्वरचित एवं मौलिक है । ©®🙏    -अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' ✍ छिंदवाड़ा मप्र

कुछ दोहे

1- ईर्ष्या कालकूटी है ईर्ष्या, करें हृदय जो वास । औरों से पहले सुनो, निज का होता नास ॥ अग्नि सी है ये ईर्ष्या, पल पल जलती जाय । जीवन के सब धन जले, हाथ न कुछ भी आय ॥ 2- द्वेष गरल पिये जग हित शिवा, हुए श्वेत से नील। हर* जग के सब द्वेष हर*,भरो हृदय में शील ॥ द्वेष भरा मन मे मगर, बोलें मीठे बोल । अमृत से विश्वास में, विष देते हैं घोल ॥ 3- प्रेम प्रीतम है इमरोज़ सा,  व्यापक दृष्टिकोण । साहिर देखो बन गया, सुंदर प्रेम त्रिकोण ॥ श्रम है मोती कर्म का, श्रम जीवन का मूल । श्रम से प्रेम करो सदा, श्रम पूजा के फूल ॥ 4- आलिंगन आलिंगन आतुर हुई, जरद शरद की धान । हरि सा चुन के वर कृषक, कर दे कन्या दान ॥ बेल विटप को देखकर, मुस्काती है मंद । पुष्प भ्रमर से पा रहे,आलिंगन मकरंद ॥ 5- घात घात लगा कर बैठते, करते हैं आघात । गैरों की हम क्या कहें, है अपनों की बात ॥ धात लगाने से सदा, खाना बहतर घात । तुम ईश्वर पर छोड़ दो, वही करें प्रतिघात ॥ रचना तिथि 13/032019 रचना स्वरचित एवं मौलिक है । ©®🙏    -सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍ छिंदवाड़ा मप्र

कुछ दोहे

1- ईर्ष्या कालकूटी है ईर्ष्या, करें हृदय जो वास । औरों से पहले सुनो, निज का होता नास ॥ अग्नि सी है ये ईर्ष्या, पल पल जलती जाय । जीवन के सब धन जले, हाथ न कुछ भी आय ॥ 2- द्वेष गरल पिये जग हित शिवा, हुए श्वेत से नील। हर* जग के सब द्वेष हर*,भरो हृदय में शील ॥ द्वेष भरा मन मे मगर, बोलें मीठे बोल । अमृत से विश्वास में, विष देते हैं घोल ॥ 3- प्रेम प्रीतम है इमरोज़ सा,  व्यापक दृष्टिकोण । साहिर देखो बन गया, सुंदर प्रेम त्रिकोण ॥ श्रम है मोती कर्म का, श्रम जीवन का मूल । श्रम से प्रेम करो सदा, श्रम पूजा के फूल ॥ 4- आलिंगन आलिंगन आतुर हुई, जरद शरद की धान । हरि सा चुन के वर कृषक, कर दे कन्या दान ॥ बेल विटप को देखकर, मुस्काती है मंद । पुष्प भ्रमर से पा रहे,आलिंगन मकरंद ॥ 5- घात घात लगा कर बैठते, करते हैं आघात । गैरों की हम क्या कहें, है अपनों की बात ॥ धात लगाने से सदा, खाना बहतर घात । तुम ईश्वर पर छोड़ दो, वही करें प्रतिघात ॥ रचना तिथि 13/032019 रचना स्वरचित एवं मौलिक है । ©®🙏    -सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍ छिंदवाड़ा मप्र

ग़ज़ल (सजाना सीखिए)

वज़्न   -   2122  2122 212 अर्कान -  फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन बह्र     -  बह्रे रमल मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़ क़ाफ़िया - आना स्वर की बंदिश रदीफ़ - सीखिये            ग़ज़ल अपनी तन्हाई सजाना सीखिए । रहगुजर में बढ़ते जाना सीखिए ॥ मुश्किलें सब धूल बन उड़ जाएंगी । बस ज़रा हिम्मत दिखाना सीखिए ॥ ज़िंदगी के साज़ में इक सुर हो कम । फिर भी सरगम को बजाना सीखिए ॥ पोंछ कर आंसू ज़रा मुस्काइए । दूसरों को भी हंसाना सीखिए ॥ आपके कदमों को चूमेगा गगन । क़द फकत अपना बढ़ाना सीखिए ॥ रक्स करती है ज़मी भी झूम कर । पर फलक पहले झुकाना सीखिए ॥ 'आरज़ू' होगी मुकम्मल एक दिन । बस लगन से लौ लगाना सीखिए ॥ रचना तिथि 19/01/2019 रचना स्वरचित एवं मौलिक है ।   -सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍ छिंदवाड़ा मप्र

ग़ज़ल

वज़न 1222 1222 1222 1222                ग़ज़ल खुदी को जो न पहचाने वही कस्तूर मांगा था । हमारे रहबररों ने क्या यही जम्हूर मांगा था ॥ सियासी साजिशें करके शराबी हम को ठहराया । हमें मालूम ही कब था कि क्यों अंगूर मांगा था ॥ मिटी है तीरगी दुनिया हमारी हो गई रोशन । खुदा की रहमतों का बस जरा सा नूर मांगा था ॥ जमाने भर की दौलत से तुम्हारा साथ था प्यारा । तुम्हारा हाथ था मांगा, न कोहेनूर मांगा था ॥ वही रिश्ते दिखाते हैं अकड़ जिनको कभी हमने । खुदा के सामने झुक झुक के बा दस्तूर मांगा था ॥ अकेले ये डगर मुश्किल मगर है ये सफर मुमकिन । तुम्हारा साथ राही हमने कब भरपूर मांगा था ॥ कड़ी है धूप जीवन की कली फिर भी खिली देखो । खुदा से 'आरज़ू' ने हौसला भरपूर मांगा था ॥ रचना तिथि 15/03/2019 रचना स्वरचित एवं मौलिक है । ©®🙏     -सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' ✍ छिंदवाड़ा मप्र

सरस्वती वंदना

हों गीत मेरे, संगीत भरे । लय ना लय हो, सरगम मुखरे । माँ शारदा विनती करूँ तुझ से । हों ये गीत अनूप, अटल-ध्रुव से । मेरे गीतों को आशीष दे माँ । ये मोहन हों, मुरली को धरे ॥1॥ लय ना लय हो सरगम मुखरे ॥ आशा की किरण,भर दूँ सब में । प्रतिभा निखरे, मांगू रब मैं । रेखा चिंता की, सबकी हरूँ । ये गीत मेरे, दीपक से बरे ॥2॥ लय ना लय हो, सरगम मुखरे । ममता से भरे, मेरे गीत सरल । वर्षा हो सुधा की, न  कोई गरल । करूँ वंदना मैं, मेरे गीत सभी । हो रेणु-रजत, सुरभि बिखरे ॥3॥ लय ना लय हो, सरगम मुखरे । मेरे गीत बने, सुंदर नागर । छलके ना फूहड़ता गागर । शालीन हों ये, लवलीन बनें । मेरी गीत लता, में श्वेता फरे ॥4॥ लय ना लय हो, सरगम मुखरे । मेरे छंद नवीन, ग़ज़ल पारस । सरिता के किनारे, ज्यों सारस । करूँ साधना यूँ, गरिमा पाऊँ । मैं प्रवीण बनूँ,तू मुझे जो वरे ॥5॥ लय ना लय हो, सरगम मुखरे । हों गीत मेरे, संगीत भरे । लय ना लय हो, सरगम मुखरे । रचना स्वरचित एवं मौलिक है ©®🙏     -अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍ छिंदवाड़ा मप्र