वज़्न -1222 1222 1222 1222 ग़ज़ल कहानी वेदना की अब यहाँ किसको सुनाना है । हमारा ही खजाना है हमे ही अब निभाना है ॥ महादेवी की तनुजा मैं दुखों की हूँ वही बदली । गगन में भी नयन में भी नहीं मेरा ठिकाना है ॥ खुशी तो बस छलावा है इधर आई उधर चल दी । ज़हन में आज तक गूंजे ग़मों का वो फ़साना है ॥ छुपा कर वेदना मन में सुनो मैं पीर गाती हूं । ज़माना दाद दे कर कह रहा दिलकश तराना है ॥ यहां पर मांगने से कब कोई दिलदार मिलता है । जिसे आता है दिल देना उसी का ये जमाना है ॥ नमक है हाथ में सबके नहीं मरहम कोई देखो । फिर अपने दिल के छालों को यहां किसको दिखाना है ॥ किताबों की सहेली है नहीं ये 'आरज़ू' तनहा । महादेवी की यामा का बना देखो सिरहाना है ॥ रचना तिथि 26/03/2019 रचना स्वरचित एवं मौलिक है । ©®🙏 -सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍ छिंदवाड़ा मप्र