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मैं औरत हूँ

वज़्न - 1222 1222 1222 1222                ग़ज़ल नज़ाकत हूँ तमाज़त हूँ इबादत हूँ मैं औरत हूँ, मुसन्निफ़ रब है जिसका वो इबारत हूँ मैं औरत हूँ । हक़ीक़त हूँ अक़ीदत हूँ मसर्रत हूँ मैं औरत हूँ, मुझे है नाज़  ख़ुद पर मैं वजाहत हूँ मैं औरत हूँ । मिले सौगात में नफ़रत का सहरा चाहे रिश्तों से, रवाँ कौसर सा दरिया-ए-मुहब्बत हूँ मैं औरत हूँ । बड़े कमज़र्फ़ हैं वो जो कहें दोजख़ का दर मुझको,  समझना मत मुझे कमतर मैं जन्नत हूँ मैं औरत हूँ । बिना मेरे ये दुनिया दो क़दम भी बढ़ नहीं सकती, मैं माज़ी, हाल मुस्तकबिल की रग़बत हूँ मैं औरत हूँ । लगाओ तोहमतें  इस कद्र मत इस्मत पे ए लोगो, हूँ माँ ईशा की मरियम सी नफ़ासत हूँ मैं औरत हूँ । हवा वो दिन हुए जब मैं फ़क़त महदूद थी घर तक, ज़मीं अंबर समंदर की मैं वुस'अत हूँ मैं औरत हूँ । किया सजदा हिमालय ने मेरी हिम्मत को झुक झुक के, वतन की सरहदों की मैं हिफाज़त हूँ मैं औरत हूँ । मुअत्तर है मेरा किरदार ये रब की इनायत है, करें गुल 'आरज़ू' जिसकी वो निकहत हूँ मैं औरत हूँ ।    -अंजुमन 'आरज़ू' ©®✍ 08/03/2020 छिंदवाड़ा मप्र __________________ अदक़ लफ़्ज़ :- नज़ाक