वज़्न - 221 1222 221 1222 अर्कान - मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन बह्र - बह्रे हज़ज मुसम्मन अख़रब _________________ ग़ज़ल सूरज को डुबोने को करता ये इबादत है । है चांद जिस से रोशन उससे ही अदावत है ॥ पुर नूर नहीं खुद पर छीनी है हुकूमत सब । क्यूं चांद को तारों से फिर इतनी शिकायत है ॥ लड़ना था अंधेरों से पर रच रहा है साज़िश । जुगनू के इशारों पर सूरज से बग़ावत है ॥ है चांद तारा सूरज घर का चराग़ां बेटा । पर धूमकेतू बेटी ये कैसी रवायत है ॥ तुलते हैं यहाँ रिश्ते दौलत के तराज़ू में । मतलब से रखें मतलब हर रिश्ता तिज़ारत है ॥ रिश्ते थे ख़ुदा जैसे रोते हैं ज़ुदा हो के । बदले हैं मरासिम सब नुक्ते की हिमाकत है ॥ हिम्मत वो जगाता है मुश्किल से निपटने की । फिर फ़िक्र करें हम क्यों जब उस की इनायत है ॥ -अंजुमन आरज़ू ©✍ 08/07/2019