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Showing posts from 2019

ज़रूरी है

वज़्न -1222 1222 1222 1222             #ग़ज़ल सहर से शाम तक सूरज सा चलना भी जरूरी है, निकलना भी ज़रूरी है कि ढलना भी ज़रूरी है । सितारे शम'अ जुगनू चाँद ने मिल रात रोशन की, हुकूमत शम्स की कुछ दिन बदलना भी ज़रूरी है । चिरागाँ कर लिया बाहर मगर अंदर अंधेरा है, दिया इक इल्म का दिल में तो जलना भी ज़रुरी है । जिन्हें हसरत हो बादल की वो पहले धूप तो चख लें, सुकून ओ छांव  गर चाहो तो जलना भी ज़रूरी है । बुलंदी ठीक है लेकिन जहां अपनों से मिलना हो, वहां झरनों सा पर्वत से फिसलना भी ज़रूरी है । मोहब्बत माँ की आला पर फ़रोग़ ए आल की ख़ातिर, इन्हें वालिद की नज़रों से दहलना भी ज़रूरी है । अगर हर चाह पूरी हो तो जीने में मज़ा ही क्या, अधूरी 'आरज़ू' दिल में मचलना भी ज़रूरी है ।    -अंजुमन 'आरज़ू' ©✍ 15/10/2019

तन्हा मिला

वज़न-2122  2122  2122   212             # ग़ज़ल गौर से देखा तो ये सारा जहां तन्हा मिला, चांद तन्हा रात तन्हा आसमां तन्हा मिला । वो जो महफ़िल में लगाता फिर रहा था कहकहे, राज़ ए ग़म उसके भी दिल में हां निहां तन्हा मिला । चश्मदीदां थे बहुत उस हादसे में भीड़ थी, खौफ के मारे मगर बस इक बयां तन्हा मिला । अपनी तामीर ए ख़ुदी में हर बशर मशरूफ़ है, साथ कितने फ़र्द हैं पर आशियां तन्हा मिला । साथ पर्वत कब चले हैं राह में ये सोच कर, हां सदफ़ की चाह में दरिया रवां तन्हा मिला । दूर तन्हाई करे ऐसा जहां में कौन है, जो मिला हो ख़ुद से ही फ़िर वो कहां तन्हा मिला । 'आरज़ू' ने भी सजा ली रश्क़ से तनहाइयां, ओस का मोती चमकता जब यहां तन्हा मिला ।     -अंजुमन आरज़ू ©✍ 01/10/2019

चनाबों में नहीं

वज़्न - 2122 2122  212            #ग़ज़ल जो हैं दानां* वो सराबों में नहीं, ज़िंदगी उनकी रूआबों में नहीं । जो पसीने में बसी ख़ुद्दार के, वैसी ख़ुशबू सौ गुलाबों में नहीं । जो सुकूं माँ बाप की खिदमत में है, वो सुकूं दूजे सवाबों में नहीं । जी रहे अतफ़ाल* बचपन जिस तरह, शान ओ शौक़त वो नवाबों में नहीं । गिनता रहता है जो तुझको ग़म मिले, क्या ख़ुशी तेरे हिसाबों में नहीं । तिश्नगी मेरे लबों की पी सके, आब इतना इन चनाबों में नहीं । ज़िंदगी ने जो सिखाया 'आरज़ू', वो सबक़ लिक्खा क़िताबों में नहीं ।     -अंजुमन 'आरज़ू' ©✍ 30/09/2019 ___________________ शब्दकोष :- *सराब= मृगतृष्णा, धोखा *अतफ़ाल =बच्चे

ग़ज़ल ज़िंदगी

वज़्न  -122  122  122  122              #ग़ज़ल फिसलती मिलेगी संभलती मिलेगी, यहां ज़िंदगी रँग बदलती मिलेगी । कभी कुछ न हो पास फिर भी खुशी से, सुकूं के फ़लक पे टहलती मिलेगी । अजब ज़िंदगी का फ़साना है यारों, कि सब पा कभी हाथ मलती मिलेगी । कहीं शक्ल औलाद की ये बदल के, कि जागीर सारी निगलती मिलेगी । लिपटती कभी बन के दामन कभी ये, बचाकर के दामन निकलती मिलेगी । कहीं धूप में पुरसुकूं मुस्कुराती, कहीं छांव में भी ये जलती मिलेगी । कभी अपने तेवर दिखाकर डराती, कभी ख़ुद सहमती दहलती मिलेगी । बड़ी फ़ुर्सतों से ठहरती है ग़म में, ख़ुशी में बहुत तेज़ चलती मिलेगी । कभी 'आरज़ू' पूरी करती है सारी, कभी ख़्वाब सारे कुचलती मिलेगी ।    -अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' ©✍ 27/09/2019 छिंदवाड़ा म•प्र•

ग़ज़ल - दुनिया

वज़्न -122  122  122  122              ग़ज़ल अनोखी ये दुनिया बदलती मिलेगी, भरम में ये ख़ुद को ही छलती मिलेगी । जिन्होंने सिखाया है चलना संभल कर, उन्हीं से बदल चाल चलती मिलेगी । अगर वक्त पर सच न सच को कहा तो ॥ ज़मी आसमा को निगलती मिलेगी ॥ कली जो लुटाती है खुशबू फ़िज़ा में । उन्हें ही फ़िज़ा ये मसलती मिलेगी ॥ ये कमज़र्फ़ इंसां सी छोटी नदी है । ज़रा आब पाया उछलती मिलेगी ॥ दिखाओ न यूं आइना दूसरों को । गिरेबां में अपने ही ग़लती मिलेगी ॥ जो चट्टान टूटी नहीं पत्थरों से । वो पानी से इक दिन पिघलती मिलेगी ॥ अगर बंद इक दर हुआ तो वहीं से, नयी राह कितनी निकलती मिलेगी । हुई एक हसरत मुकम्मल तो दिल में, नयी 'आरज़ू' फिर मचलती मिलेगी ।     -अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' ©✍ 26/09/2019 छिंदवाड़ा म• प्र•

मुबारक़ तुम्हे जन्मदिन हो तुम्हारा

वज़न-122 122 122 122 तुम्हें आज रब ने ज़मीं पे उतारा । मुबारक़ तुम्हें जन्मदिन हो तुम्हारा ॥ दुआ है कि राहों में कांटा न आए । ये जीवन सदा फूल सा मुस्कुराए । अगर फिर भी आये रुकावट के पत्थर । उन्हीं से बना पुल करो राह बहतर । बनो हर चुनौती का उत्तर करारा ॥ मुबारक़ तुम्हें जन्मदिन हो तुम्हारा ॥ रहो छांव में पर चखो धूप को भी । निखारो तो संघर्ष से रूप को भी ॥ करो काम ऐसे कि हो नाम रोशन । महकने लगे तुमसे सारा ही गुलशन ॥ बनो फूल दीपक कली या सितारा । मुबारक तुम्हें जन्मदिन हो तुम्हारा ॥ अंधेरा निराशा का छाए न काला । रहे हौसलों का सदा ही उजाला ॥ ख़ुदा तुम को हर हाल में दे सहारे । न पतवार छूटे करों से तुम्हारे ॥ भंवर में फंसे ना तुम्हारा शिकारा । मुबारक़ तुम्हें जन्मदिन हो तुम्हारा ॥ तुम्हारे लिए हमने मांगी है मन्नत । मिले इस ज़मीं पे ही खुशियों की जन्नत ॥ न हो कामयाबी से कोई भी दूरी । सभी 'आरज़ू' दिल की हो जाएँ पूरी ॥ रहे ख़ुशनुमा ज़िंदगी भर नज़ारा । मुबारक़ तुम्हें जन्मदिन हो तुम्हारा॥ तुम्हें आज रब ने ज़मीं पे उतारा । मुबारक़ तुम्हें जन्मदिन हो तुम्हारा ॥

शामियां की तरह

वज़न -212  212  212             ग़ज़ल सर पे है शामियां की तरह । ये दुआ आसमां की तरह ॥ इस ज़माने में मां के सिवा । कोई होगा न मां की तरह ॥ मुझको उसने लगाया गले । चूम कर बागबां की तरह ॥ उनको सदमा कि ग़म में भी हम । जी रहे शादमां की तरह ॥ वो जो मुश्किल में कतराते थे । साथ है कारवां की तरह ॥ हम ग़ज़ल में हक़ीक़त छुपा । कह रहे दास्तां की तरह ॥ 'आरज़ू' रब की रहमत बिना । जीस्त है इंतिहां की तरह ॥    -अंजुमन आरज़ू  ©✍ 18/09/2019

चाणक्य छला जाता है

आधार छंद - सार/ललित छंद गीत - चाणक्य छला जाता है जलता है खुद दीपक सा पर, ज्ञान प्रकाश दिखाता । बांट के अपना सब सुख जन में, आनंदित हो जाता । इसके बदले शिक्षक जग से, देखो क्या पाता है । हर युग में चाणक्य सा कोई, हाय छला जाता है ॥ इंद्रासन ना ले ले तप से, मधवा भय से बोला । अहिल्या गौतम के अमृत से, जीवन में विष  घोला । विश्वामित्र की भंग तपस्या, छल से करवाई थी । सत्ता रक्षा को पृथ्वी पर, इंद्र परी आई थी । काम क्रोध मद लोभों का फिर, दोष मढ़ा जाता है । हर युग में चाणक्य सा कोई, हाय छला जाता है ॥ नेतृत्व से परिपूर्ण बनाके, गढ़ता कितने नेता । मंत्री हो या भूप सभी को, रुप यही है देता । पर सत्ता धारी बनते ही, लोग मदांध हुए हैं । काट दिए सिर उनके जिनके, झुक कर पांव छुए हैं । शस्त्र निपुण कर देने वाला, वाण यहां खाता है । हर युग में चाणक्य सा कोई, हाय छला जाता है ॥ नंद वंश ने एका की जब, बात एक ना मानी । चंद्रगुप्त सा शासक गढ़ के, याद दिलाई नानी । राजा की रक्षा का उपक्रम, दुर्घटना बन आया । बिंदुसार ने माँ की हत्या, का आरोप लगाया । अपने ही निर्मित शासन को, छोड़ चला जाता है । हर

ग़ज़ल - फ़लसफ़ा

2122 2122 2122 212                  ग़ज़ल इन किताबों में निहां है ज़िंदगी का फ़लसफ़ा । ये खमोशी से बयां करतीं सदी का फ़लसफ़ा ॥ बनके ज़ीना हर बशर को जीना सिखलाती किताब । इनमें बातिन है बुलंदी की खुशी का फ़लसफ़ा ॥ स्याह है पर रोशनाई नाम यूं ही तो नहीं । ये कुतुब पर दिल से लिखती रोशनी का फ़लसफ़ा ॥ क्या किताबों से बड़ा कोई यहां उस्ताद है । थाम कर उंगली सिखातीं रहबरी का फ़लसफ़ा ॥ हमसफर बन कर सफ़र आसान करतीं रात का । हर सफ़े पर है चमकता चांदनी का फ़लसफ़ा ॥ इन किताबों में हैं गहरे इल्म के दरिया कई । काश मुझ में हो हमेशा तिश्नगी का फ़लसफ़ा ॥ सूफ़ियाना दिल में मेरे अब यही है 'आरज़ू' । ज़िंदगी भर मैं निभाऊं सादगी का फ़लसफ़ा ॥      -अंजुमन आरज़ू  ©✍ 04/09/2019

प्यार कौन करे

वज़न-2122 1212 22/112 ग़ज़ल ज़िंदगी फिर से ख़ार कौन करे । प्यार अब बार बार कौन करे ॥ प्यार मीरा सी इक इबादत है । प्यार को दागदार कौन करे ॥ जिसके किरदार में न खुशबू हो । ऐसी सूरत से प्यार कौन करे ॥ प्यार है इक सदा खमोशी की । प्यार को इस्तहार कौन करे ॥ प्यार की राह पुर ख़तर है मगर । प्यार में होशियार कौन करे ॥ कितने दरिया बहा दिए रो के । आँख अब अश्क़ बार कौन करे ॥ राह देखी है उसकी सदियों तक । और अब इंतजार कौन करे ॥ जिसकी रग़ रग़ में हो फरेब भरा । उस पे अब एतबार कौन करे ॥ मुझको कहता है वो महादेवी । उन सी कविता हज़ार कौन करे ॥ गर नहीं है खुशी जमाने में । ग़म की दहलीज़ पार कौन करे ॥ 'आरज़ू' खुश्क हो गयी दिल की । अब ख़िज़ा को बहार कौन करे ॥    -अंजुमन आरज़ू ©✍ 20/08/2019

सूरज से बग़ावत

वज़्न    -   221 1222 221 1222 अर्कान -  मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन बह्र - बह्रे हज़ज मुसम्मन अख़रब _________________                ग़ज़ल सूरज को डुबोने को करता ये इबादत है । है चांद जिस से रोशन उससे ही अदावत है ॥ पुर नूर नहीं खुद पर छीनी है हुकूमत सब । क्यूं चांद को तारों से  फिर इतनी शिकायत है ॥ लड़ना था अंधेरों से पर रच रहा है साज़िश । जुगनू के इशारों पर सूरज से बग़ावत है ॥ है चांद तारा सूरज घर का चराग़ां बेटा । पर धूमकेतू बेटी ये कैसी रवायत है ॥ तुलते हैं यहाँ  रिश्ते दौलत के तराज़ू में । मतलब से रखें मतलब हर रिश्ता तिज़ारत है ॥ रिश्ते थे ख़ुदा जैसे रोते हैं ज़ुदा हो के । बदले हैं मरासिम सब नुक्ते की हिमाकत है ॥ हिम्मत वो जगाता है मुश्किल से निपटने की । फिर फ़िक्र करें  हम क्यों जब उस की इनायत है ॥ -अंजुमन आरज़ू ©✍ 08/07/2019

न अब जगमग आना हुआ

ग़ज़ल दूर परदेस में आब ओ दाना हुआ । आज बेटा भी घर से रवाना हुआ ॥ भूलकर फ़र्ज़ जब हक़ की चाहत बड़ी । रेज़ा रेज़ा हर इक आशियाना हुआ ॥ रच के साजिश किए तर्क़ रिश्ते सभी । मेरी बातों का तो बस बहाना हुआ ॥ तेल बाती दिये में हुई अनबनें । है अंधेरा न अब जगमगाना हुआ ॥ फिर न आए पलट कर कभी इस तरफ । छोड़ कर वो गए हैं ज़माना हुआ ॥ तेरी बातों से कुछ चोट ऐसी लगी । गम में डूबा हुआ ये तराना हुआ ॥ अब न बाकी रही कोई भी 'आरज़ू' । एक मुद्दत से दिल सूफियाना हुआ ॥    -अंजुमन 'आरज़ू'©✍ 01/07/2019

शम्'अ रोशन कर दी हमने

वज़न- 2122 2122 2122 212 ग़ज़ल शम्'अ रोशन कर दी हमने तीरगी के सामने । टिक ना पाएगा अंधेरा रोशनी के सामने ॥ बिन थके चलते रहे गर मंजिलों की चाह में । हार जाती मुश्किलें भी आदमी के सामने ॥ पर्वतों से हौसलों को देखकर हैरान है । आसमां भी झुक गया है अब जमीं के सामने ॥ आबे जमजम चूमता है एड़ियों को तिफ़्ल की । हार कर बहता है चश्मा तिश्नगी के सामने ॥ रोज़ हों रोज़े हों चाहे या के हो कोई नमाज़ । मां की खिदमत है बड़ी हर बंदगी के सामने ॥ मैंने माना तू बड़ा है प्यासा रखता है मगर । ए समंदर तू है छोटा मुझ नदी के सामने ॥ खूबियों से भी नवाजा 'आरज़ू' अल्लाह ने । फिर भला क्यों हार जाऊं इक कमी के सामने ॥       -अंजुमन 'आरज़ू'©✍ 23/05/2019

हल्दी

लघुकथा        एक बहन एक भाई वाले एक आदर्श परिवार में बड़े अरमानों से भाई का विवाह हुआ । गोरी सुंदर दुल्हन घर आई,  नये रिश्ते बने, माता-पिता को बहू, बहन को भाभी मिली । और भी नए रिश्तों की सौगातों के सपने सजे, आशाएं बंधीं ।       कुछ ही दिन बीते थे कि घर में अपने पति की अहम भूमिका को देखकर, वह अपनी ननद अल्पना से बोलीं- तुम्हारे भइया बड़ी अहमियत रखते हैं इस घर में..।" अल्पना ने कहा -हां भाभी, वे धुरी है इस घर की ।" भाभी रसोई में खड़ी थी तो अल्पना ने आगे कहा -"बस यूं समझ लीजिए, कि वह नमक है, जैसे नमक बिना रसोई सूनी, वैसे ही उनके बिना यह धर सूना ।"        भाभी बोलीं - "भैया नमक तो मैं क्या...??" अल्पना ने मुस्कुराकर कहां- "भैया रसोई के राजा तो भाभी रसोई की रानी ही होगी न .....।" तभी भाभी बोली- "मतलब काली मिर्च, और आप.... #हल्दी "      अल्पना खुश हो गई । भारतीय संस्कृति में हल्दी सौभाग्य सूचक जो मानी जाती है, भोजन हो या त्वचा रंगत बढ़ाती है, आदि आदि...।       अल्पना अपने मनभावन खयालों से निकल भी न पाई थी, कि भाभी आगे बोलीं -"भोजन मे

बिगड़ गई बात

बिगड़ गई बात बातों ही बातों में देखो बिगड़ गई बात । टूटे रिश्ते पल में छूटा जीवन भर का साथ ॥ कुछ तुमने हमसे कहा, कुछ हमने तुम से कहा । मानी ना अपनी खता, एक दूसरे से यूँ कहा । तुमने ये कैसे कहा, तुम्हारी क्या अवकात ॥ टूटे रिश्ते पल में छूटा जीवन भर का साथ ॥ झगड़े ये आगे बढ़े,जब हम तुम दोनों लड़े । झुकना कोई ना चाहे,अपनी ज़िद पे हम अड़े । जीता कोई नहीं, मिली दोनों को मात ॥ टूटे रिश्ते पल में छूटा जीवन भर का साथ ॥ माफियाँ माँगने पर भी जो बात ना बनी । साले और बहनोई में जाने कैसी ये ठनी । बहन बिना भाई की निकली सूनी बारात ॥ टूटे रिश्ते पल में छूटा जीवन भर का साथ ॥ पल भर में पिघल जाएँ,जो मिले अहम की आँच । सहेज के रखना इन्हें, रिश्ते हैं कच्चे काँच ॥ रेशम की डोरी हैं ये स्नेह की सौगात ।। टूटे रिश्ते पल में छूटा जीवन भर का साथ ॥ बातों ही बातों में देखो बिगड़ गई बात । टूटे रिश्ते पल में छूटा जीवन भर का साथ ॥     -अंनजुम 'आरज़ू'©🙏 23-04-2018

लिखी ईश को पाती

पुनर्जन्म लेने वाली तो, बात ना हम को भाती है। पर यदि इस में सच्चाई तो, मेरी कलम ये गाती है। सात जन्म के बंधन वाला तो, नहीं मेरा कोई साथी है। मुझको ये ही माँ-पा देना, लिखी ईश को पाती है ॥ मुझे अकेला कभी न छोड़े, मेरी प्यारी सी बहना । श्री हीन इस जीवन में, वो ही तो है सच्चा गहना । सात जन्म तक साथ रहेंगे, वो भी ये दोहराती है । मुझको ये ही माँ-पा देना, लिखी ईश को पाती है ॥ माँ का प्यारा बेटा राजा, चंदा मेरा भाई है । घर की सारी जिम्मेदारी, पापा सी निभाई है । सात जन्म की साथी उनकी ,भाभी भी तो भाती है। मुझको ये ही माँ-पा देना, लिखी ईश को पाती है ॥ भैया की बिटिया आना, है नटखट करती नादानी। और बहन का बेटा, आनू भी तो करता शैतानी। ये सब मुझको सात जन्म दे, दुआ ये लब पे आती है। मुझको ये ही माँ-पा देना, लिखी ईश को पाती है ॥ छोटा राखी भाई मेरा, उससे भी है चाहतें। बहन-जमाई सुखी रहे तो, मन को मिलती राहतें । हर मुश्किल में साथ खड़े हैं, सुख दुख के ये साथी हैं । मुझको ये ही माँ-पा देना लिखी ईश को पाती है ॥ घर से बाहर भी तो मुझको, मिश्री से मीठे बोल मिले । मित्र मंडली सीमित लेकिन, रिश्

हाइकु

     पत्नी ये बोली सुन ओ हमजोली     होके नरम ।      दोस्तों की टोली करती है ठिठोली      खुली है रम|      बीड़ी शराब होते सब खराब     फैंको चिलम|     होता है बुरा सिगरेट का कश     ना मारो दम|     करो ना शोर चलो घर की ओर     तुम्हें कसम|     मां के दुलारे हो बच्चों के भी प्यारे     मेरे बलम|     नम क्यों आंख हम तुम हैं साथ     काहे का गम|     छोड़ो भी पीना नए सिरे से जीना     सीख ले हम।        -अंजुमन 'आरज़ू'©✍ 31-05-2018

दो जून की रोटी

दो जून की रोटी मिलती, हम हैं किस्मत वाले । कितने लोग भूखे रहते हैं, मिलते नहीं निवाले ॥ हाथ ठेला लिए धूप में, आम-जाम चिल्लाए । तब जाकर घर वालों को वो, आधा पेट खिलाए । रोटी की खातिर बेचे, गुपचुप चने मसाले ॥1॥ कितने लोग भूखे रहते हैं, मिलते नहीं निवाले ॥ फूल बेचने वाले बच्चे, ढूंढे दृष्टि आस की । आधा तन कपड़ा पहने जो, खेती करें कपास की । जूते बेचने वालों के, पैरों में भी है छाले ॥2॥ कितने लोग भूखे रहते हैं, मिलते नहीं निवाले ॥ जिनके कांधे पे हल है, उनके भी आंसू झलके। हलधर की हल-आशा जिनसे, वो हैं कितने हल्के । अन्नदाता करे फाँके चाहे, कितनी फसल उगाले ॥3॥ कितने लोग भूखे रहते हैं, मिलते नहीं निवाले ॥ बहुत विवश कर देती है ये, दो जून की रोटी । और विवश का लाभ उठाते, नीयत जिनकी खोटी । तन भी कर देना पड़ता तब, औरों के हवाले ॥4॥ कितने लोग भूखे रहते हैं, मिलते नहीं निवाले ॥ भरे पेट का शौक है कविता, बात ये कड़वी सच्ची । जितनी पीड़ा हो गाथा मैं, समझी जाती अच्छी । भूख पे कविता लिखके पहने, हैं मंचों पर माले ॥5॥ कितने लोग भूखे रहते हैं, मिलते नहीं निवाले ॥ दो जून की रोटी मिलती, हम

नवजीवन

यूं ही गुमसुम सी बैठी थी । सोच रही थी क्या जीना है । बिटिया आंचल धाम के बोली । मम्मी मुझको मम पीना है ॥1॥ खुद को छोड़ कहीं खो जाऊं । चिर निद्रा में मैं सो जाऊं । पर क्या होगा फिर इसके बाद । सोच ज़ोर धड़का सीना है ॥2॥ अभी तो बस दो साल हुई है । सधी हुई नहीं चाल हुई है । सीख रही है अभी बोलना । नानी को कहती नीना है ॥3॥ देखी जो मुझको यूं गुमसुम । पास में आ के रोली कुमकुम । भोलेपन से मुझसे बोली । किझने तेला क्या छीना है ॥4॥ माँ मैं हूं न तिला खिलौना देख तु मेला लूप छलोना फिल तू यूँ क्यों कल लोती है । क्या तेला आंचल झीना है ॥5॥ उसे देख मैं जब मुस्काई । वो भी खुश होकर यूँ गाई । नाच उठी फिर थिरक थिरक कर । तक तक तक तक  धिन धीना है ॥6॥ जब उसको यूँ गाते देखा । नाच उठी किस्मत की रेखा । जीना* सीख लिया फिर मैंने । हिम्मत ही जीवन-जीना* है ॥7॥ नवजीवन का स्वाद चखा है । रंजो गम को दूर रखा है । उसके भोले बचपन से ही, जीवन अमृत रस पीना है ॥8॥     -अंजुमन 'आरज़ू'©✍ 10/06/2018 _______________________________ शब्दकोश:- (7) 1*जीना = जीवित रहना 2* जीना = सीढ़ी

जुनून

नामुमकिन को मुमकिन कर दे ऐसा जज़्बा जुनून है । कोशिश करने वालों के तो सारे रंग मरून हैं ।। अपनी अपनी ज़िद पे अड़े हैं सीमा के दोनों ही छोर । वो भी अपनी माँ के बेटे हम भी तो हे सिरमोर ।। पर मातृभूमि कब चाहती अपने बेटों का खून है ।। नामुमकिन को मुमकिन कर दे ऐसा जज़्बा जुनून है ।। संतुष्टि न हो तो अटारी चैन कहाँ पाती है । और कहीं तो छोटी सी कुटिया भी मुस्काती है । दुनिया है कितनी सुंदर गर अंतर्मन में सुकून है ।। नामुमकिन को मुमकिन कर दे ऐसा जज़्बा जुनून है ।।      -©अंजुमन 'आरज़ू' ✍ 29/03/2018

हिम्मत को सलाम

भीगे परों से उड़ के तूने छू लिया आसमान । हिम्मत को सलाम है तेरा हौसला है महान ।। कोई नहीं सूरज का साथी तन्हा तमतमाता है । पर्वत के शिखरों पे चढ़ पाताल का तम भगाता है ।। जग का अकेले पोषण कर कहलाता है भगवान । हिम्मत को सलाम है तेरा हौसला है महान ।। सो जाता जब थकके दिवाकर रोज निशा आती है । छा जाता जब घना अंधेरा जलते दिया बाती है । नन्हा सा दीपक भी देखो है कितना बलवान । हिम्मत को सलाम है तेरा हौसला है महान ।। सीमा पर प्रहरी बन कर दुश्मन को धूल चटाये। जान भले ही दे दें लेकिन झंडा झुक ना पाये ।। दस दस पे भारी है मेरे हिन्द का एक जवान । हिम्मत को सलाम है तेरा हौसला है महान ।। सबसे ऊँचे लोग हैं वो जो हिम्मत के बन्दे हैं । ना तो लूले और न लंगड़े ना ही ये अन्धे हैं ।। अक्षम कहकर इनका कभी ना करना तुम अपमान । हिम्मत को सलाम है तेरा हौसला है महान ।। भीगे परों से उड़के तूने छू लिया आसमान । हिम्मत को सलाम है तेरा हौसला है महान ।।      -©अंजुमन 'आरज़ू'✍ 28/03/2019

पापा से बेहद प्यार है

माना कि यह जीवन, संकुचन नहीं विस्तार है । किन्तु मुझको अपने पापा से बेहद प्यार है ॥ गोदावरी ने विस्तार रोका, ऋषि अगस्त के कमंडल में । मेरा भी विस्तार रुक रहा, परिस्थितियों के बबंडर में । गोदावरी ने पति के लिए, तो मैंने अपने पिता के लिए । दोनों ने ही प्रेमवश रोका अपना प्रसार है । किन्तु मुझको अपने पापा से बेहद प्यार है ॥ आज कमंडल मे सिमटी ,कल कौआ कोइ न आएगा । मेरा संकुचित जीवन, नदी सा प्रवाह नहीं पाएगा । सरस्वती सूख भी गई तो क्या, संगम तो हो जाएगा । अपनों की खातिर मिट जाना,जीवन का यही तो सार है । किन्तु मुझको अपने पापा से बेहद प्यार है ॥ मात पिता ने इतना त्यागा ,क्या मैं पद नहीं तज सकती । मुक्त गगन में उड़ना छोड़, पिंजरे में नही सज सकती । अपनी उड़ान से भली मुझे, लगती पिता की मुस्कान है । बचपन से अब तक इनके ,कितने मुझ पर उपकार हैं । किन्तु मुझको अपने पापा से बेहद प्यार है ॥     -अंजुमन 'आरज़ू'©✍ 2006 __________________________        मेरी इस रचना में अंतर कथाएं निहित हैं पहली मेरे संघर्ष की- मेरी नियुक्ति वरिष्ठ अध्यापक के पद पर घर से काफी दूर हुई थी। इस वजह