वज़्न -1222 1222 1222 1222 #ग़ज़ल सहर से शाम तक सूरज सा चलना भी जरूरी है, निकलना भी ज़रूरी है कि ढलना भी ज़रूरी है । सितारे शम'अ जुगनू चाँद ने मिल रात रोशन की, हुकूमत शम्स की कुछ दिन बदलना भी ज़रूरी है । चिरागाँ कर लिया बाहर मगर अंदर अंधेरा है, दिया इक इल्म का दिल में तो जलना भी ज़रुरी है । जिन्हें हसरत हो बादल की वो पहले धूप तो चख लें, सुकून ओ छांव गर चाहो तो जलना भी ज़रूरी है । बुलंदी ठीक है लेकिन जहां अपनों से मिलना हो, वहां झरनों सा पर्वत से फिसलना भी ज़रूरी है । मोहब्बत माँ की आला पर फ़रोग़ ए आल की ख़ातिर, इन्हें वालिद की नज़रों से दहलना भी ज़रूरी है । अगर हर चाह पूरी हो तो जीने में मज़ा ही क्या, अधूरी 'आरज़ू' दिल में मचलना भी ज़रूरी है । -अंजुमन 'आरज़ू' ©✍ 15/10/2019