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ग़ज़ल-15 बस हौसलों से चाहता पहचान परिंदा

बस   हौसलों   से   चाहता   पहचान   परिंदा
रखता  है   दिलों  में   यही   अरमान   परिंदा

कुछ  दानों के  लालच में  लो  परवाज़ गँवाई
अब   बंद  क़फ़स  में   हुआ   नादान  परिंदा

रूदाद  सुनी  अर्श  से  तो  फ़र्ज़  समझ  कर
अस्मत  के  लिए  चढ़  गया  परवान  परिंदा

ग़श खा के गिरा  अर्श से वो  फ़र्श पे ज़ख़्मी
फिर कुछ  दिनों का रह गया मेहमान परिंदा

तन्हा  था  मगर  रग  में  रवाँ हौसला भी था
मरते  हुए   भी  पा   गया   सम्मान   परिंदा

जाँ-बाज़ है हिम्मत से जिया ज़ीस्त इसलिए
कहला  रहा  है  आज भी  अरहान* परिंदा 

अब 'आरज़ू' है ख़ुश कि बिना पंख जहां में
परवाज़  ग़ज़ल  भर  रही  उनवान  परिंदा

अरहान - राजा

-© अंजुमन आरज़ू    
11/10/2019 
रौशनी के हमसफ़र/2021
ग़ज़ल-15/पृष्ठ क्र• 28
वज़्न -221 1221 1221 122

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