बिन तुम्हारे ये लगे सारी ही महफ़िल तन्हा
चाहिए कब हमें तुम बिन यहाँ मंज़िल तन्हा
बे-हुनर को मिला ए'ज़ाज़ बड़े जलसे में
देखता रह गया फ़न अपना वो क़ाबिल तन्हा
क़ामयाबी में करे हर कोई रिश्ता क़ायम
सहनी पड़ती है मगर राह की मुश्किल तन्हा
शम्स या शम'अ, क़मर हो कि बशर हो कोई
रौशनी के लिए जलते सभी तिल तिल तन्हा
साथ जिसने भी जहाँ में दिया सच्चाई का
रह गया वो ही ज़माने के मुक़ाबिल तन्हा
हौसला देख के हैरान हुआ तूफ़ाँ भी
हमने पतवार बिना पा लिया साहिल तन्हा
लाज़मी है कि ज़रुरत भी तवज़्ज़ो पाएँ
'आरज़ू' ही तो फ़क़त है नहीं क़ामिल* तन्हा
क़ामिल - संपूर्ण
-© अंजुमन आरज़ू
01/10/2019
रौशनी के हमसफ़र /2021
ग़ज़ल-14/पृष्ठ क्र• 27
वज़्न -2122 1122 1122 22/112
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