ग़ौर से देखा तो ये सारा जहाँ तन्हा मिला
चाँद तन्हा रात तन्हा आसमाँ तन्हा मिला
वो जो महफ़िल में लगाता फिर रहा था कहकहे
राज़-ए-ग़म उसके भी दिल में हाँ निहाँ तन्हा मिला
अपनी तामीर -ए- ख़ुदी में हर बशर मसरूफ़ है
साथ कितने फ़र्द हैं पर आशियाँ तन्हा मिला
चश्मदीदाँ थे बहुत उस हादसे के भीड़ में
ख़ौफ़ के मारे मगर बस इक बयाँ तन्हा मिला
साथ पर्वत कब चले हैं राह में ये सोच कर
बह्र की चाहत में इक दरिया रवाँ तन्हा मिला
दूर तन्हाई करे ऐसा जहां में कौन है
जो मिला हो ख़ुद से ही फिर वो कहाँ तन्हा मिला
'आरज़ू' ने भी सजा ली रश्क़ से तन्हाइयाँ
ओस का मोती चमकता जब यहाँ तन्हा मिला
-© अंजुमन आरज़ू
01/10/2019
रौशनी के हमसफ़र/2021
ग़ज़ल-13/पृष्ठ क्र• 26
वज़्न-2122 2122 2122 212
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