लब पे नग़्मा सजा लीजिए
रंज -ओ - ग़म गुनगुना लीजिए
अपनी कमियों के एहसास को
बाँसुरी सा बजा लीजिए
ख़ार मुश्किल के चुन चुन सभी
राह आसाँ बना लीजिए
दर्द ने मीर -ओ - मीरा गढ़े
दर्द का भी मज़ा लीजिए
शम्स हो जाए गर चे गुरूब
शम'अ बन जगमगा लीजिए
सच का दामन न छोड़ेंगे हम
लाख सूली चढ़ा लीजिए
टूट जाएँ मरासिम अगर
राबता फिर बना लीजिए
झुक के क़दमों में माँ बाप के
क़द अना का घटा लीजिए
आख़िरत के लिए 'आरज़ू'
नेकियाँ कुछ कमा लीजिए
-© अंजुमन आरज़ू 05/11/2019
रौशनी के हमसफ़र/17/2021
वज़्न -212 212 212
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